बेरोजगारी के 8 प्रकार || Types of Unemployment

बेरोजगारी क्या है || Unemployment in hindi

बेरोजगारी वह अवस्था है जिसके कारण व्यक्ति को रोजगार की तलाश के कारण भी रोजगार नहीं मिल पाता है व्यक्ति अपनी योग्यता और उपलब्धि के अनुसार जब रोजगार को प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसे बेरोजगारी कहते हैं बेरोजगारी का आकलन अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य से किया जा सकता है अगर अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है तो रोजगार की उपलब्धता बढ़ जाती है लेकिन अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य खराब है तो बेरोजगारी दर में लगातार वृद्धि होती जाती है।

बेरोजगारी कितने प्रकार की होती है
बेरोजगारी के प्रकार है


 

बेरोजगारी के प्रकार है | Berojgari ke prakar

 

1. खुली बेरोजगारी

खुली बेरोजगारी उस बेरोजगारी को कहते हैं जिसमें काम करने की इच्छा एवं व्यक्ति के क्षमता के बावजूद किसी व्यक्ति को रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है इसमें अवसर की कमी होती है इसमें लोग कार्य तो करना चाहते हैं परंतु कार्य करने का अवसर ही नहीं मिलता है इसके अंतर्गत शिक्षित बेरोजगार साधारण बेरोजगार श्रमिक कुशल बेरोजगार को शामिल किया जाता है यह बेरोजगारी संगठन और देश में अवसर की कमी को दर्शाता है इस बेरोजगारी के कारण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है जिसमें व्यक्ति शिक्षित कुशल होने के बावजूद भी रोजगार को प्राप्त नहीं कर पाता है।

 

2. प्रच्छन्न बेरोजगारी

प्रच्छन्न बेरोजगारी वह बेरोजगारी होती है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती है अर्थात इसका प्रत्यक्ष रूप से आकलन नहीं किया जा सकता है इसमें श्रमबल का बहुत सारा हिस्सा बेरोजगारी के रूप में दिखाई देता है व्यक्ति आवश्यक रूप से जरूर इस में काम करता है अपने कार्य बल के अनुसार कार्य करता है लेकिन इसकी सीमांत उत्पादकता शून्य होती है इस बेरोजगारी में कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योकि इस बेरोजगारी में उत्पादकता नगण्य हो जाती हैं बहुत कम कार्य के लिए अधिक से अधिक श्रमिक कार्य करते हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था में यह बेरोजगारी श्रमबल की हानि के रूप में कार्य करती है यह अर्थव्यवस्था की छिपी हुई बेरोजगारी को प्रदर्शित करने वाला माना जाता है क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से बेरोजगारी नहीं होती है।

इस तरह की बेरोजगारी अधिकतर कृषि क्षेत्र में देखने को मिलता है उदाहरण के तौर पर एक किसान के पास 10 एकड़ खेत है उस 10 एकड़ में वह किसान कार्य करता था लेकिन समय बीतने के साथ-साथ किसान के बच्चे भी उसी खेत में कार्य करते हैं लेकिन धीरे-धीरे और समय बीतने के बाद किसान के बच्चे के बच्चे भी उसी खेत में कार्य करते हैं अर्थात तीन पीढ़ी एक साथ कार्य कर रहे है, उसमें किसान किसान के बेटे और किसान के बेटे के बेटे सभी साथ मिलकर कार्य करते हैं लेकिन उत्पादकता पहले जितने ही रहती है जिससे सीमांत उत्पादकता शुन्य हो जाती हैं क्योंकि पहले उस 10 एकड़ को एक किसान ही अपने श्रम बल से कार्य कर सकता था लेकिन समय बीतने के साथ उस 10 एकड़ को 1 से अधिक लोग कार्य कर रहे हैं अर्थात कम श्रम पर अधिक से अधिक श्रमिक कार्य कर रहे हैं जिससे उत्पादकता में कोई अंतर नहीं रहा है लेकिन श्रमबल उत्पादकता की अपेक्षा बहुत अधिक हो जाती है जिससे सीमांत उत्पादकता को शून्य माना जाता है।

 

3. घर्षण आत्मक बेरोजगारी

घर्षण आत्मक बेरोजगारी यह बेरोजगारी की वह महादशा है जिसमें बाजार की दशा में परिवर्तन होने के कारण बेरोजगारी उत्पन्न होती है इससे खोज बेरोजगारी के रूप में भी जाना जाता है जब कोई व्यक्ति नौकरी करते करते अन्य नौकरी की तलाश में करता है जिससे उसे अच्छा वेतनमान प्राप्त हो सके इन दोनों के बीच के समय अंतराल को ही घर्षण आत्मक बेरोजगारी के रूप में जाना जाता है यह बेरोजगारी मांग एवं पूर्ति की शक्तियों में घर्षण को उत्पन्न करती हैं क्योंकि कोई व्यक्ति नौकरी करते करते नई नौकरी की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह स्विच करता है जिससे वह  नई नौकरी में स्थानांतरित हो जाता है जिससे कुशल श्रमिक को कुशलता के अनुसार  रोजगार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है इसीलिए इसे घर्षण आत्मक बेरोजगारी कहा गया है।

 

4. संरचनात्मक बेरोजगारी

अर्थव्यवस्था में जब आर्थिक सामाजिक और तकनीकी विकास के परिणाम स्वरूप उद्योगों औद्योगिकरण सेवा क्षेत्र शासकीय और प्राइवेट क्षेत्र में का विस्तार होता है तो यह बाजार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिक श्रमिकों के बीच कौशल, शिक्षा के विकास में तालमेल नहीं बैठ पाता है। इस संरचनात्मक परिवर्तन की परिणाम स्वरूप होने वाली बेरोजगारी को संरचनात्मक रोजगारी कहा जाता है यह बेरोजगारी दीर्घकालिक होता है क्योंकि इसमें कौशल विकास का महत्वपूर्ण योगदान होता है उदाहरण के तौर पर यदि श्रमिक वर्ग में बहुत अधिक मात्रा में अकुशल श्रमिक है तो उन श्रमिकों को प्रोफेशनल एवं कुशल रोजगार प्रदान नहीं किया जा सकता है जिसके कारण संरचनात्मक बेरोजगारी उत्पन्न होती है।

 

5. चक्रीय बेरोजगारी

जब अर्थव्यवस्था में मंदी के समय बेरोजगारी बढ़ जाती है और जब अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के कारण बेरोजगारी में गिरावट आती है तो इसे चक्रीय बेरोजगारी कहा जाता है यह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में पूरी अर्थव्यवस्था या किसी विशेष क्षेत्र में ऐसी बेरोजगारी समय-समय पर देखने को मिलता है जिसके वजह से श्रमिक वर्ग को परेशानियों का सामना करना पड़ता है ज्यादातर यह चक्रीय बेरोजगारी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पाई जाती है जब अर्थव्यवस्था विकास की ओर बढ़ती है तब रोजगार की अधिक से अधिक मांग होती है लेकिन मंदी के समय उन्हीं श्रमिक वर्गों को रोजगार नहीं मिल पाता है इस प्रकार की प्रक्रिया को चक्रीय बेरोजगारी कहा जाता है।

 

6. मौसमी बेरोजगारी

मौसमी बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में इस बेरोजगारी का विशेष स्थान होता है क्योंकि यह प्रतिवर्ष यह कोई विशेष मौसम में उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को दर्शाता है जो श्रमिक वर्ग के लिए नुकसान देहि होता है इस बेरोजगारी के कारण कुछ समय के लिए रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है जिससे श्रमिक अपने श्रमबल का उपयोग नहीं कर पाता है अधिकतर यह बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में देखा गया है क्योंकि कृषि क्षेत्र में कुछ मौसम में एक फसल लगाकर बाकी समय के लिए भूमि को खाली छोड़ दिया जाता है जिससे उस भूमि में कोई फसल उत्पादन नहीं किया जाता है जिसका परिणाम श्रमिक वर्ग को श्रम नहीं मिल पाता है अधिकतर यह भौगोलिक क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है।

 

7. अल्प रोजगार या कमजोर रोजगार

अल्प रोजगार जब बाजार में श्रमिकों को अपनी क्षमता अनुसार कार्य नहीं मिलता है या श्रमिकों को पूर्ण कालीन रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है और यह रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होता है ना ही किसी प्रकार की कानूनी सुरक्षा इस रोजगार में प्राप्त हो पाता है यह केवल लोगों को औपचारिक रूप से काम करने के लिए बाध्य करता है ही इस प्रकार के रोजगार में कोई अनुबंध नहीं होता है यह केवल अल्पकालीन होती है तो इस प्रकार के रोजगार को अल्प रोजगार कहा जाता है या कमजोर रोजगार कहा जाता है।

 

8. प्रौद्योगिकी बेरोजगारी

प्रौद्योगिकी बेरोजगारी जब बाजार में कोई नई प्रौद्योगिकी का आगमन होता है तो इसकी वजह से पुराने रोजगार श्रमिकों को नहीं प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी नहीं होती है जिससे उन श्रमिकों की कुशलता नए प्रौद्योगिकी के लिए शुन्य हो जाती है इस नए प्रौद्योगिकी के लिए नए कुशल श्रमिकों की जरूरत पड़ती है और नए कुशल श्रमिकों के कारण जो नई प्रौद्योगिकी के लिए बेरोजगारी उत्पन्न होती है तथा पुरानी श्रमिकों की नई प्रौद्योगिकी के लिए कोई जरूरत नहीं होती हैं अर्थात पुराने श्रमिक का श्रम बल व्यर्थ हो जाता है उसे प्रौद्योगिकी रोजगारी कहा जाता है।


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