1858 का चार्टर एक्ट | charter act 1858
charter act 1858 |
1858 का भारत सरकार अधिनियम | government of india act 1858 in hindi
भारतीय
शासन अधिनियम 1858 क्यों लाया गया।
1857
की क्रांति के बाद ब्रिटिश शासन द्वारा भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रशासनिक और राजनीतिक
बदलाव के लिए इस अधिनियम को पारित किया गया। 1857 की क्रांति ने ब्रिटिश साम्राज्य
के दोष पूर्ण शासन को हिंसक क्रांति में परिवर्तित कर दिया था। ब्रिटिश कंपनी के द्वारा अपनाये गए दोष पूर्ण नीतियों
ने भारत के जनता और भारत के राज्यों का बहुत अधिक शोषण किया था। ब्रिटिश कपनी की विस्तारवादी
नीति जिसे व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति के नाम से जाना जाता है, इस नीति के द्वारा
जिन राज्यों में पैतृक वारिस न होने पर उन राज्यों को ब्रिटिश राज्यों में शामिल कर
लिया जाता था।
सातारा,
झांसी, नागपुर, अवध और संबलपुर जैसे अनेक रजवाड़ों को ब्रिटिश कंपनी ने अपने विस्तारवादी
नीतियों से हड़प लिया था, वही आर्थिक रूप देखा जाये तो भारतीय जनता को अत्यधिक कर देना
पड़ता था, भारतीय जनता के उद्योग धंधे लगभग खत्म हो गए थे, सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव
हथकरघा उद्योग को पड़ा था, वहीं सामाजिक सुधार में देखा जाये तो, सती प्रथा का अंत कर
दिया गया था, विधवा पुनर्विवाह पर चालू कर दिया गया था। जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ
था। ब्रिटिश कंपनी में भारतीय सैनिकों के साथ
भेदभाव पूर्ण रवैया अपनया जाता था, साथ ही साथ युद्ध में प्रयोग होने वाले बारूद में
गाय और सुअर की चर्बीओं का प्रयोग विद्रोह के प्रमुख कारण थे।
साथ
ही साथ और कई राजनतिक कारण, आर्थिक कारण, सामजिक कारण, धार्मिक कारण और सैनिक कारण
शामिल थे, जिसे भारत के रजवाड़ों और जनता ने घोर विरोध किया, लेकिन ब्रिटिश कंपनी अपनी
दमनकारी नीतियों से शोषण करते रहा, जिसका परिणाम 1857 के क्रांति में तब्दील हो गया।
फिर ब्रिटिश के अधीन भारतीय क्षेत्रों में सुधार करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा भारत
सरकार अधिनियम 1858 को 2 अगस्त 1858 को पारित
किया गया, इस अधिनियम को ब्रिटिश क्षेत्र के अधीन भारतीय क्षेत्र पर लागू किया गया।
1858
का अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
1857
की क्रांति के बाद ब्रिटिश कंपनी के अधीन भारतीय क्षेत्र में हुए विद्रोह को सुधार
करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा भारत सरकार अधिनियम 1958 को पारित किया गया। इस अधिनियम
के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्णता समाप्त कर दिया गया और ब्रिटिश भारत का शासन प्रत्यक्ष
रूप से ब्रिटिश साम्राज्य की अधीन अर्थात ब्रिटिश महारानी के नाम से शासित होने वाला
था।
इस
अधिनियम के तहत ईस्ट इंडियन कंपनी के भारत गवर्नर जनरल पद को समाप्त कर दिया है, और
नए पद का सृजन किया गया जिसे वायसराय की संज्ञा दी गई। ईस्ट इंडियन कंपनी के निदेशक
मंडल और नियंत्रण बोर्ड को भी समाप्त कर दिया गया और कंपनी के कोर्ट और डायरेक्टर की
शक्ति भारत के राज्य सचिव के नाम से निर्देशित होने था। ब्रिटिश अधिकृत भारत के पहले
भारत के राज्य सचिव लॉर्ड स्टेनली को बनाया गया था।
भारत
सरकार अधिनियम 1958 के तहत भारत के राज्य सचिव को ब्रिटिश सांसद और ब्रिटिश के प्रधानमंत्री
के मंत्रिमण्डल का सदस्य होना अनवार्य था, इस अधिनियम के द्वारा एक भारतीय परिषद् का गठन किया गया, जिसमे
15 सदस्य शामिल थे ,इस परिषद् के सदस्य ब्रिटिश भारत के क्षेत्रों को शासित करने में
सहयोग देने का कार्य करने वाले थे। इस सभी सदस्यों का वेतन भाते भारतीय राजस्व से दिया
जाना था। लेकिन इस भारतीय परिषद का संचालन ब्रिटिश सांसद के अधीन था, अर्थात इसका संचालन
सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चलाया जाना था।
भारत
के राज्य सचिव के माध्यम से ब्रिटिश संसद में ब्रिटिश अधिकृत भारती मामलों से संबंधित
प्रश्न पर चर्च और संसोधन किया जा सकता था,
ब्रिटिश अधिकृत भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय पद
का सृजन किया गया था। जिसकी नियुक्ति महारानी विक्टोरिया द्वारा किया जाता था और भारत
के विभिन्न प्रॉविन्स में राज्यपाल की नियुक्ति भी ब्रिटिश की महारानी द्वारा किया
जाता था। ब्रिटिश अधिकृत भारत का प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग को बनाया गया, लॉर्ड कैनिंग
ही ब्रिटिश भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे।
भारत
सरकार अधिनियम 1858 के मध्यम से अधिकृत भारत को प्रत्येक्ष रूप से क्राउन के अधीन कर
दिया गया, अर्थात इस अधिनियम के लागु होने के बाद ब्रिटिश कपनी को समाप्त कर दिया गया। इस अधिनियम के तहत व्यपगत
का सिद्धान्त या हड़प नीति को समाप्त कर दिया गया। साथ ही साथ पिट्स इंडिया एक्ट के
दोहरी सरकार को भी समाप्त कर दिया गया।
भारत
सरकार अधिनियम 1858 के मध्यम से ब्रिटिश अधिकृत भारत में प्रशासनिक सुधार पर भी ध्यान
दिया गया, ब्रिटिश अधिकृत भारत में प्रशासन के लिए भारतीय सिविल सेवा का गठन किया गया।
ब्रिटिश अधिकृत भारत लोगों के लिए सेवा में भर्ती करने का प्रावधान किया गया। और इस
सेवा में भर्ती के लिए आयु का निर्धारण किया गया।
इस अधिनियम को क्राउन शासन के प्रत्येक्ष नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समाप्त होने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश अधिकृत भारत में शासन किया जाने था, ब्रिटिश क्राउन इस अधिनियम के मध्यम से अपने आर्थिक हित को प्रत्येक्ष रूप से साधने वाला था, जिस ब्रिटिश अधिकृत भारत के भीतर जितने रजवाड़े थे, उसको ब्रिटिश साम्राज्य में विलय तो कर दिया गया लेकिन उन रजवाड़ो के शासन करता उन्ही राज्य के राजा और राजकुमारों को सौप दिया गया।
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