12 जैव ईंधन के फायदे और नुकसान | Advantage and Disadvantage of Biofuel

जैव ईंधन के लाभ और हानि क्या है | Biofuel pros and cons

 

जैव ईंधन के फायदे और नुकसान 

जैव ईंधन के फायदे और नुकसान क्या है? | biofuel ke fayde or nuksan

 

जैव ईंधन नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों का एक माध्यम है जैव ईंधन को प्राप्त करने के लिए हमें प्रकृति पर निर्भर होना पड़ता है यह वनस्पति पेड़ पौधे और शैवालों के कार्बनिक पदार्थों से मिलकर बनता है जैव ईंधन का आज आधुनिक समय में बहुत अधिक उपयोग बढ़ गए हैं। यह ग्रीन ऊर्जा को बढ़ाने में कारगर साबित होता है। जैव ईंधन का उपयोग गलोसिन और डीजल जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों को बदलने के लिए उपयोग किया जाता है। अर्थात जैव ईंधन का उपयोग जीवाश्म ईंधन के बदले कर सकते है। जो पर्यावरण और जैव विविधता के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। जैव के फायदे और नुकसान biofuel ke labh or hani निम्नलिखित हो सकता है।

 

जैव ईंधन के फायदे | Advantages of biofuels

 

1. नवीनीकरण ऊर्जा स्रोत

 

जैव इंधन को हम असीमित ऊर्जा के रूप में उपयोग कर सकते हैं। क्योंकि हम जब जैव ईंधन का उपयोग करते हैं, तो यह प्रकृति से प्राप्त होने वाली फसल वनस्पति और शैवाल जैसे कार्बनिक पदार्थों से निर्मित होता है। जिन्हें हम बार-बार फसल के माध्यम से उगा सकते हैं। और इसका हम बार-बार उपयोग कर सकते हैं। यह कभी भी खत्म ना होने वाली नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों में से एक है।

 

2. ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी

 

जैव ईंधन की प्रोसेसिंग में जीवाश्म ईंधन की तुलना ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता होता है। जैव ईंधन में आमतौर पर कम मात्रा में ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न होती है। क्योंकि जैव ईंधन बनाते समय इसके कच्चे पदार्थ का दहन करने से उत्पन्न होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड की भरपाई पौधे द्वारा उसके विकास के समय पौधे द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड से हो जाती है। अगर जैव इंधन की ग्रीन हाउस उत्सर्जन का आकलन किया जाए, तो पौधे द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड और जैव ईंधन के प्रोडक्शन में उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग शुन्य के बराबर हो जाती है, या बहुत नगण्य मात्रा में अंतर आता है।

 

3. ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देना

 

जिस देश में ऊर्जा की अत्यधिक मांग बढ़ जाती है, उस देश में अगर ऊर्जा के संसाधन नहीं उपस्थित है। तो उस अवस्था में उस देश को दूसरे देश से जीवाश्म ईंधन या अन्य ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग करना पड़ता है। अर्थात उस देश में ऊर्जा के स्रोतों को आयात किया जाता है। जैव ईंधन नवीनीकृत स्रोत है, जो दूसरे देश से होने वाले ऊर्जा के आयात की निर्भरता को कम करता है। और उस देश को उर्जा संपन्न बनाने में मदद करता है।

 

 

4. आर्थिक विकास को बढ़ावा देना

 

जैव ईंधन ऊर्जा के नवीनीकरण स्रोतों में से एक है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। अर्थात जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अनेक रोजगार और अवसर पैदा होते हैं। जैव ईंधन प्रकृति से प्राप्त होने वाले फसल, वनस्पति तथा शैवाल से उत्पन्न होता है। अगर कोई देश जैव ईंधन के उपयोग और उत्पादन को बढ़ाना चाहता है, तो उस देश की कृषि अर्थव्यवस्था के साथ- साथ रोजगार और अन्य संबंधित उद्योगों, परिवहन में विकास बढ़ते जाएगा। जो उस देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में योगदान दे सकता है।

 

5. मौजूदा बुनियादी ढांचे के अनुकूल होना आसान

 

जैव ईंधन का उत्पादन आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरीकों से किया जा सकता है। जैव ईंधन का उत्पादन करते समय किसी विशेष जटिल उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि इसे मौजूदा आंतरिक दहन इंजन और बुनियादी ढांचे में किसी भी विशेष संशोधन के बिना आसानी से किया जा सकता है। प्रकृति से प्राप्त फसलों, वनस्पतियों और शैवाल से हम आसानी से जैव ईंधन बना सकते हैं। जिसे आधुनिक समय में उपयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन ओ की निर्भरता को कम कर देगा और उसके बदले नियम अधिक से अधिक जैव ईंधन का उपयोग करके पर्यावरण को स्वच्छ और बेहतर बना सकते हैं।

 

6. ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण में योगदान

 

जैव ईंधन एक अक्षय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत का एक उदाहरण है। इसे हम फसल वनस्पति या अन्य प्राकृतिक वनस्पतियों के माध्यम से आसानी से बना सकते हैं। जैव ईंधन पेट्रोल, डीजल, केरोसिन आदि जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में अधिक योगदान दे सकता है। साथ ही, अगर हम इसका बेहतर तरीके से उपयोग करते हैं, तो हमें कम कीमत पर बेहतर ईंधन मिल सकता है, जो हमारे पर्यावरण के लिए फायदेमंद हो सकता है।

 

 

जैव ईंधन के नुकसान क्या हैं? | Disadvantages of biofuels

 

 

1. भूमि उपयोग और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा का बढ़ना

 

जैव ईंधन उत्पादन के लिए विभिन्न फसलों की खेती के क्षेत्रफल में कमियां सकती हैं। यह कमी निश्चित मात्रा में कृषि भूमि उपलब्धता के कारण हो सकती है, जिससे अन्य खाद्य पदार्थ की कीमतें बहुत अधिक मात्रा में बढ़ सकती हैं। वही जैव ईंधन के लिए उत्पाद फसलों के लिए हम वनों की कटाई को बढ़ा सकते हैं। जो खाद्य असंतुलन और पर्यावरण के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

 

 

2. जैव ईंधन के अधिक पानी की उपयोगिता में वृद्धि

 

जैव ईंधन फसलों के उत्पादन में अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अर्थात जिस क्षेत्र में बारिश कम होती है, या सिंचाई के संसाधन उपलब्ध नहीं है, उस क्षेत्र में जैव इंधन जैसी फसलों का उत्पादन उचित मात्रा में नहीं किया जा सकता है। साथ ही साथ यह पानी की बर्बादी और अनेक क्षेत्रों में भूजल स्तर की कमी को भी बढ़ाने में योगदान देगा जो पानी की समस्या को पैदा कर सकता है।

 

 

3. सीमित ऊर्जा घनत्व में अंतर

 

आमतौर पर फसल से उत्पन्न होने वाले जैव ईंधन में ऊर्जा घनत्व जीवाश्म ईंधन की तुलना में ऊर्जा घनत्व कम होता है। अर्थात जैव ईंधन से चलने वाली वाहनों को अधिक मात्रा में जैव इंधन की आवश्यकता होगी या अधिक बार जैव इंधन को भरने की आवश्यकता होगी, जो तुलनात्मक रूप से चुनौतियों को बढ़ा देगा।

 

4. भूमि उपयोग उत्सर्जन एवं परिवर्तन

 

जैव ईंधन की फसलों के उत्पादन के लिए भूमि को परिवर्तित किया जाता है, जिससे मिट्टी और वनस्पति में संग्रहित होने वाले कार्बन पर्यावरण में अपने घनत्व को बढ़ाते हैं।  इससे पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है, जो पर्यावरण के लिए एक चुनौती साबित हो सकता है।

 

 

5. पशु आहार की उपलब्धता में चुनौतियाँ

 

जैव ईंधन मुख्य रूप से प्राकृतिक रूप से उत्पादित फसलों, वनस्पतियों और पेड़ों पर निर्भर करता है। यदि हम बड़ी मात्रा में जैव ईंधन का उत्पादन करते हैं, तो हमें बड़ी मात्रा में जैव ईंधन के लिए कच्चे माल की आवश्यकता होगी। जिससे जीव-जंतुओं के लिए भोजन की समस्या उत्पन्न हो जाएगी और इसे पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।

 

 

6. जैव ईंधन की तकनीकी चुनौतियाँ

 

उन्नत प्रकार के जैव ईंधन के उत्पादन के लिए विशेष तकनीक की आवश्यकता होती है। ये विशेष प्रौद्योगिकियां महंगी हैं, और साथ ही, प्रौद्योगिकी का विस्तार करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। जिससे आर्थिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं. जैव ईंधन का उत्पादन केवल उन्हीं क्षेत्रों में किया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में जैव ईंधन कच्चा माल उपलब्ध है और उन क्षेत्रों में इसका उत्पादन नहीं किया जा सकता है। जहां पानी की मात्रा कम है और कृषि क्षेत्र कम है, वहां यह कई तकनीकी चुनौतियों को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।

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